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मोदी की जीत हिंदू समाज पर उनके प्रचंड रौब की है: नजरिया

इस जनादेश की एक ही व्याख्या है और वो दो शब्द हैं. नरेंद्र मोदी. ये जीत न रेंद्र मोदी की है. लोगों की जिस तरह की आस्था उभरी है उनमें वो अप्रत्याशित है. भारत की आज़ादी के बाद ये पहली बार हुआ है कि किसी एक व्यक्ति का हिंदू समा ज पर इतना प्रचंड रौब और पकड़ राजनीतिक दृष्टि से बन गई है. ऐसा न जवाहर लाल नेहरू के जमाने में था और न ही इंदिरा गांधी के जमाने में. अगर इसको बड़े समीकरण में देखें तो लगभग 50 प्रतिशत वोट शेयर , सारी संस्थाएं बीजेपी के हाथ में हो जाएंगी. अगर कर्नाटक और मध्य प्रदेश की सरकार गिर गई तो राज्यसभा की संख्या में भी तब्दीली होगी. इनके पास सिविल सोसाइटी का जो संगठन है आरएसए स और जो तमाम दूसरी संस्थाएं हैं, वो अपनी तरह की सांस्कृतिक चेतना पैदा करने की कोशिश कर रही हैं. भारत की राजनीति में ये मौक़ा बिल्कुल अप्रत्याशित है. अब अगर ये पूछें कि ऐसा क्यों हु आ है तो इसके कई कारण बताए जा सकते हैं. जब हार होती है तो कई तरह की अटकलें लगाई जा सकती हैं. ये ज़रूर है कि विपक्ष बहुत कमज़ोर था. हर तरह से कमज़ोर था. रणनीति में कमज़ोर था. विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर गंठबंधन नहीं कर