मध्य पूर्व के छिपे इतिहास को बयां करती तस्वीरें

एक तस्वीर हज़ार लफ़्ज़ों से ज़्यादा असरदार अंदाज़ में बात को कह जाती है. कला का ये वो माध्यम है, जिसने ख़ुशी और ग़म, युद्ध और शांति, दोस्ती और दुश्मनी को कई बार बयां किया है.
बहुत सी तस्वीरें हमेशा के लिए हमारे ज़हन में दर्ज हो जाती हैं. वहीं, कुछ ऐसी तस्वीरें भी होती हैं, जो बहुत दिनों तक गुमनाम होती हैं. फिर, जब वो सामने आती हैं, तो उनके ज़रिए हमें नया नज़रिया मिलता है.
इन दिनों तस्वीरों की एक ऐसी ही नुमाइश ऑनलाइन लगाई जा रही है. इसका नाम है अरब इमेज फाउंडेशन. आम तौर पर हम अरब मुल्कों को कट्टरपंथी, दकियानूसी और पिछड़ा हुआ मानते हैं. लेकिन, इस फाउंडेशन ने कुछ ऐसी तस्वीरें जुटाई हैं, जो मध्य-पूर्व के देशों के बारे में आपके ख़्यालात बिल्कुल बदल देंगी.
इनमें लेस्बियन रिश्तों की झांकी भी मिलती है और जाल में बंधे मर्द भी दिखते हैं. इसमें बहुत सी तस्वीरें नग्न लोगों की भी हैं और बच्चों की राइफ़लों के साथ खिंचाई गई फोटो भी हैं.
रोज़मर्रा की ज़िंदगी की ये तस्वीरें, कई दशकों से लोगों की आंखों से ओझल थीं. किसी के निजी खज़ाने में थीं या फिर कहीं गुमनाम ज़िंदगी बिता रही थीं.
लेकिन, अरब इमेज फाउंडेशन ने पिछले बीस बरस से इन्हें जुटाने का काम शुरू किया हुआ है. इसने सौ साल से भी ज़्यादा पुरानी तस्वीरें, दस्तावेज़ और किताबें जुटाई हैं.
हालांकि आम जनता की इन तक पहुंच बहुत सीमित रही थी. इसीलिए अब अरब इमेज फाउंडेशन ने इसके लिए ऑनलाइन नुमाइश लगानी शुरू की है.
इस प्रदर्शनी में आप अरब देशों की हज़ारों अनदेखी तस्वीरें और दस्तावेज़ देख सकते हैं. इनसे अरब देशों के बारे में दुनिया का नज़रिया बदलने की उम्मीद है. ये वो ऐतिहासिक तस्वीरें हैं, जो मध्य-पूर्व की एक अलग ही छवि पेश करती हैं.
अरब इमेज फाउंडेशन की स्थापना 1997 में लेबनान की राजधानी बेरूत में हुई थी. इसका मक़सद उत्तरी अफ़्रीका, मध्य-पूर्व और खाड़ी देशों की ऐसी धरोहरों को सहेजना था.
इनमें से बहुत सी तस्वीरें फाउंडेशन को दान में मिली हैं. आज की तारीख़ में फाउंडेशन के पास पांच लाख से ज़्यादा तस्वीरों के प्रिंट और नेगेटिव हैं. अरब इमेज फाउंडेशन के प्रबंध निदेशक मार्क मोराकेश कहते हैं कि, "हम फोटोग्राफ़ी का ऐसा मंच हैं, जो बंधे-बंधाए दायरों को तोड़ता है. हमारी कोशिश नई सोच को पनपने में मदद करने की है."
अरब इमेज फाउंडेशन के पहले पन्ने पर जाएंगे तो आप को तस्वीरों, दस्तावेज़ों और किताबों को देखने के लिए कई लिंक मिलेंगे. जो आपको हर बार इस पेज पर आने पर नया तजुर्बा देंगे.
अलग-अलग दौर के क़िस्से यहां आपको दिखेंगे. तस्वीरों को समय काल के अलावा देशों और विषयों में भी बांटा गया है, ताकि देखने वाला गहराई से विश्लेषण कर सके.
कई तस्वीरों को आप बड़ा करके भी देख सकते हैं, ताकि उन में छिपे बारीक़ संकेतों को अच्छे से समझ सकें.
इन तस्वीरों को आप अपने सोशल मीडिया पर शेयर भी कर सकते हैं. आप अपने टैग और जानकारी भी इनके साथ जोड़ सकते हैं. मोराकेश कहते हैं, "हम चाहते हैं कि ये ऑनलाइन प्रदर्शनी अरब समुदाय के नए भविष्य की बुनियाद बने."
फाउंडेशन के पास जो तस्वीरें और नेगेटिव हैं, वो समय के झंझावात से जूझते आए हैं. फाउंडेशन ने न तो उनमें कोई छेड़-छाड़ की है, न ही डिजिटल प्रिंट में कोई बदलाव किया है, उन्हें जस का तस इस वेबसाइट पर डाला गया है.
ऐसी ही एक तस्वीर आर्मेनियाई मूल के मिस्र के फोटोग्राफर अरमंद ने ली है. अरमंद 1901 में तुर्की में पैदा हुए थे. उस वक़्त आर्मेनिया तुर्की का ही हिस्सा था. इसके प्रिंट में सफ़ेद निशान पड़ गए हैं. इससे तस्वीर को नुक़सान पहुंचा है. ये तस्वीर एक नर्तकी की है. जो मुड़ी-तुड़ी सी नज़र आती है.
पुराने ज़माने की इन तस्वीरों में से अक्सर ऐसे रिवाजों की झलक मिलती है, जो अब ख़त्म हो चुके हैं.
पिछली सदी के बीसवें और तीसवें दशक में कैमिल अल करेह नाम के फोटोग्राफर को लेबनान में पोस्टमॉर्टम की तस्वीरें खींचने के लिए जाना जाता था.
उसकी एक फोटो में मृत्यु शैय्या पर पड़े एक इंसान के साथ खड़े लोग दिखाई देते हैं. मर रहे इंसान के हाथ में फूल दिखाई देता है. बाक़ी खड़े लोगों ने काले रंग के सूट पहने हुए हैं और क़तार में खड़े हैं.
1900 में सीरिया में पैदा हुए फोटोग्राफर जिब्रैल जब्बूर की एक तस्वीर भी क़ाबिल-ए-ज़िक्र है. ये बद्दू क़बीले के एक ख़ानबदोश की फोट है, जिसके कंधे पर उसका पालतू शिकारी बाज़ है.
जब्बूर की तस्वीरों में आप को बद्दू क़बीले के लोगों की ज़िंदगी के रंग दिखाई देते हैं. इस क़बीले के लोग बीसवीं सदी में सीरिया के रेगिस्तान में आबाद थे.
अरब इमेज फाउंडेशन की तस्वीरों को देखकर आपको अंदाज़ा होगा कि पिछली एक सदी में अरब देश कितने बदल गए हैं.
मिस्र के एक अनजान फोटोग्राफर ने दो युवा महिलाओं की तस्वीर ली है. इसमें उन्होंने अपने चेहरों से नक़ाब हटा लिया है. उस दौर में महिलाओं की ऐसी तस्वीरें लेना किसी इंक़लाब से कम नहीं था.
इसी तरह, आर्मेनियाई मूल के मिस्र के फोटोग्राफर वान लियो ने 1950-60 के दशक में बहुत से कलाकारों की उत्तेजक तस्वीरें खींची थीं. लेकिन 1980 के दशक में जब अरब देशों में कट्टरपंथ की बयार बहने लगी, तो उसने अपने अवन में सारे प्रिंट जला दिए थे.

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